आगरा जगन्नाथ रथ यात्रा 2025: भक्ति और उत्सव का भव्य नज़ारा
आगरा की जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 का भव्य उत्सव। जानें कैसे भक्ति, उत्साह और भाईचारे से सराबोर हुए आगरा के रास्ते। रथ खींचने से लेकर खास रस्मों तक, पढ़ें इस पवित्र त्योहार की पूरी कहानी।
आगरा की जगन्नाथ रथ यात्रा 2025: आस्था और खुशियों का अद्भुत संगम
Agra's Jagannath Rath Yatra 2025: A Wonderful Confluence of Faith and Joy.
आज आगरा में 'जगन्नाथ रथ यात्रा' हुई, जिसने पूरे शहर को भक्ति और रंगों से भर दिया। भगवान जगन्नाथ, अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपने बड़े से रथ 'नंदीघोष' पर बैठकर शहर घूमने निकले। बल्केश्वर महालक्ष्मी मंदिर से शुरू हुई ये रथयात्रा इतनी शानदार थी कि हर कोई खुश हो गया। जैसे ही रथ पर भगवान के दर्शन हुए, 'हरे कृष्ण, हरे राम' के भजन और शंख की आवाज़ें गूंजने लगीं, जिससे भक्तों में बहुत खुशी छा गई।

ये सिर्फ कोई त्यौहार नहीं है, बल्कि ये एक बहुत ही खास धार्मिक यात्रा है। ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ साल में एक बार अपनी जन्मभूमि 'गुंडिचा मंदिर' की ओर निकलते हैं। जो भक्त रथ खींचते हैं, उनका मानना है कि इससे उन्हें मोक्ष मिलता है। आगरा में ये उत्साह साफ-साफ दिखाई दिया। रथयात्रा से एक दिन पहले, 26 जून को श्री जगन्नाथ मंदिर (इस्कॉन) में 'नयन उत्सव' मनाया गया था, जहाँ 15 दिनों बाद भगवान ने अपने भाई-बहन के साथ भक्तों को दर्शन दिए और छप्पन भोग व फूलों से सजावट भी हुई थी।
सुबह से ही आगरा की सड़कें त्यौहार के लिए सजने लगी थीं। चारों ओर झंडे, फूल और भगवान के जयकारे गूंज रहे थे, जिससे हर जगह रौनक थी। दोपहर तक भक्तों की भीड़ बढ़ती गई, और सभी की आँखों में भगवान के दर्शन की गहरी चाहत दिखाई दे रही थी।
इस खास मौके पर, सजे-धजे विशाल रथ सभी का ध्यान खींच रहे थे। भगवान के 25 फीट ऊँचे नंदीघोष रथ को कोलकाता और वृंदावन के कलाकारों ने लगभग पाँच क्विंटल अलग-अलग तरह के फूलों से बहुत ही खूबसूरत तरीके से सजाया था। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का खास वृंदावन 'चंदुआ श्रृंगार' किया गया था, जिसमें नाथद्वारा के कारीगरों ने लगभग 25 किलो वजनी जर्किन और सोने के तारों से सजे नीले कपड़े बनाए थे। रंग-बिरंगे कपड़े पहने भक्तगण, जिनमें महिलाएँ गोपी के कपड़ों में और पुरुष ग्वाले के रूप में थे, हाथों में 'जय जगन्नाथ' के पोस्टर लिए हुए थे। उनके माथे पर तिलक और गले में तुलसी की माला बहुत अच्छी लग रही थी। कई लोग अपने छोटे 'लड्डू गोपाल' को भी साथ लाए थे। माहौल 'जय जगन्नाथ' के जयकारों, ढोल-नगाड़ों और भजनों की मीठी गूँज से भर गया था। अगरबत्तियों, ताजे फूलों और प्रसाद की खुशबू हवा में घुल रही थी, जिससे चारों ओर शांति और अच्छी ऊर्जा महसूस हो रही थी।
इसके बाद, भक्तों ने आस्था और विश्वास के प्रतीक इन विशाल रथों को खींचना शुरू किया। 'जय जगन्नाथ' बोलते हुए, हजारों लोगों के एक साथ प्रयास से रथ धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। रथयात्रा की शुरुआत घोड़ों और ऊँटों की अगुवाई में दर्जनों झंडों के साथ हुई, जिसमें प्रभुपाद जी, राधा-कृष्ण और चैतन्य महाप्रभु की सुंदर झांकियाँ भी खास थीं। रथ पर नाचते मोरों के साथ राधा-कृष्ण की झांकी ने सभी को भावुक कर दिया। भारत के अलग-अलग राज्यों के साथ-साथ यूक्रेन और रूस से भी हजारों भक्तों ने इसमें हिस्सा लिया। रथ जिस भी रास्ते से गुजरा, लोगों ने अपने घरों और दुकानों के बाहर फूल बरसाए, आरती उतारी और भगवान का आशीर्वाद लिया। सैकड़ों लोग जमीन पर लेटकर भगवान की वंदना करते दिखे, क्योंकि माना जाता है कि रथ की रस्सी खींचने से जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है। रास्ते को झाड़ू लगाकर और रंगोली बनाकर साफ किया गया।
इस यात्रा में कई पुरानी और खास रस्में भी निभाई गईं। रथयात्रा की शुरुआत वृंदावन इस्कॉन के हरिविजय प्रभु और आगरा इस्कॉन के अध्यक्ष अरविंद प्रभु द्वारा की गई पहली आरती से हुई। भगवान को रथ तक लाने की रस्म 'पहांडी बीजे' कहलाती है, और रथों का रास्ता साफ करने की भी एक खास रस्म का पालन किया गया। केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल ने भी रथयात्रा के रास्ते में झाड़ू लगाकर सेवा की, उन्होंने कहा कि जो लोग पैसों की वजह से पुरी नहीं जा सकते, वे अपने शहर में ही ये पुण्य कमा सकते हैं। इस सेवा में उनके साथ नितेश अग्रवाल, मुकेश अग्रवाल, सुशील अग्रवाल, आशु मित्तल, नवीन सिंघल, संजय कुकरैजा, अनूप अग्रवाल, रमेश यादव, दिनेश अग्रवाल, शैलेश बंसल, विभु सिंघल, राजेश उपाध्याय, ओमप्रकाश अग्रवाल, मनोज अग्रवाल, राजीव मल्होत्रा, प्रदीप बंसल, सूरज, शाश्वत नंदलाल, ज्योति बंसल सहित कई भक्त शामिल हुए। चारों ओर पूजा-पाठ, फूल चढ़ाना और प्रसाद बांटना चल रहा था, जिससे माहौल बहुत ही दिव्य लग रहा था।
इस रथ यात्रा की सबसे अच्छी बात इसकी एकता और सभी को साथ लेकर चलने वाली भावना थी, जहाँ बिना किसी भेद-भाव के सभी भक्त एक साथ भक्ति में डूबे हुए थे।